….. और कमाने की तड़प में खाना भूल गए – प्रकाश ‘पंकज’
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वाह रे ग्लोबलाईजेशन !
तूने घरवालों को भी बेघर कर दिया।
सभी खानाबदोश जैसे इधर-उधर भाग रहे हैं;
शायद उन्हें भी पता नहीं, क्यों?
– प्रकाश ‘पंकज’
* चित्र: गूगल साभार
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शिव देख मनुज ललकार रहा, शिव देख मनुज ललकार रहा,
अस्तित्व ही तेरा नकार रहा , शिव जाग मनुज ललकार रहा।
तुम क्या संहारक बनते हो? प्रलय मनुज स्वयं ला रहा।
तुम क्या विनाश ला सकते जग में? विनाश मनुज स्वयं ला रहा।
शिव जाग मनुज ललकार रहा, शिव देख मनुज ललकार रहा।
चिर-वसुधा की हरियाली को तार-तार जब कर डाला,
निर्मल पावन गंगा को मलित पाप-पंकिल कर डाला,
स्वच्छ, स्वतंत्र प्राण-वायु में विष निरंतर घोल रहा,
है हम सा संहारक कोई? अभिमान मद डोल रहा।
शिव जाग मनुज ललकार रहा, शिव देख मनुज ललकार रहा।
क्या तू शशिधर है सच में ? तो देख शशि भी है इनके वश में।
यह सुनकर मन कभी हर्षित होता था – “मानव मयंक तक पहुँच चुका है”,
फिर चिर-विषाद सा हुआ है मन में, किसका तांडव हो रहा है जग में ?
धरती की शोभा नाश रहा, शशी-शोभा-नाश विचार रहा,
भविष्य झाँक और फिर बतला – कैसा तेरा श्रृंगार रहा ?
शिव जाग मनुज ललकार रहा, शिव देख मनुज ललकार रहा।
कितने उदहारण दूँ मैं तुझको, लज्जित तू हो जाएगा,
![]() |
अमरनाथ का लुप्त होता हिमलिंग |
* वदन: मुख
* चित्र: गूगल साभार
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सन्दर्भ: अंगद की आस्था और विश्वास
http://www.youtube.com/v/V2wzo8jBRok?fs=1&hl=en_US&color1=0xe1600f&color2=0xfebd01
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वो क्या थी नभ की छत?
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अगर कोई होटल-ढाबे वाला किसी को जीविका देने के लिए “बाल-मजदूरी” करवाने का दोषी हो सकता है तो आज हम सारे लोग जो बड़े मजे से टी.वी. के सामने ठहाके मारते हैं, वाह-वाह करते है, मेरी नज़र में वो सब दोषी हैं “बाल-मजदूरी” करवाने के।
चलता हूँ और आपके लिए कुछ लिंक छोड़ जाता हूँ। धन्यवाद!
*चित्र: गूगल साभार
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‘पंकज-पत्र’ पर पंकज की कुछ कविताएँ: प्रतिकार
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मैं सोंचता हूँ,
डंडे से तो कुछ बदला नहीं,
अबकी बाँस उठाकर कोशिश करूँ।
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संकल्पों के दीप जलाता कदम बढ़ाता चल,
वक्ष दबे बारूदों से खुद राह बनाता चल।
– प्रकाश ‘पंकज’
ये बारूद जो सुलग रहे हैं हम जैसों के भीतर, न जाने कब फूटेंगे,
फूटेंगे भी या फिर बस फुसफुसा कर ही रह जाएँगे – ये भी किसे पता?
… कोई बात नहीं,
आज तो कम से कम कुछ कानफोड़ू धमाके कर के बहरों को सुना देने का भ्रम और मजबूत कर लें!
शुभ पटाखोत्सव! 😉
शुभ दीपोत्सव!
आपको और आपके परिवार को प्रकाश-पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ !
ऐसा दिया जलाएँ मन में, जग उजियारा होए!
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जीना एक आडम्बर साला
मरना भी पाखंड !
– प्रकाश ‘पंकज’
चित्र: गूगल देव साभार
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हमारे हिन्दुस्तान में
हिन्दी कम जानना या नहीं जानना बड़े गर्व की बात है,
पर अंग्रेजी कम जानना एक शर्म की बात है
और अंग्रेजी नहीं जानना डूब मरने की बात है।
… फिर भी न जाने कैसे हम निर्लज्जों को राष्ट्र पर गर्व है
– प्रकाश ‘पंकज’
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