भारत बनाम भ्रष्टाचार: फिर अन्ना भूखा रे!


भारत डूबा भ्रष्टाचार में कौन बचाए रे?

दो पाटन के बीच है जनता कोई बचाए रे!

एक तरफ महँगाई, भारी कर भी देते हैं,

कर कर करते भारत में घुट-घुट कर जीते हैं।

घूसखोरी के करतब हर अफसर दिखलाता है,

जनता का सेवक अब पद का धौंस जमाता है।

आकण्ठ डूबे भारत ने कुछ लिया हिचकोले रे,

जनाक्रोश भी उमड़ रहा है हौले हौले रे।

केजरीवाल ने दिया एक तिनके का सहारा जो,

किरण रामदेव अन्ना ने फिर मिलके दहाड़ा जो।

सोई जनता भी जाग रही अब इनकी पुकारों से,

विश्वजाल भी भरने लगा है इनके विचारों से।

शुरू हुआ जनजागरण अब पूरे भारत में,

जन-लोकपाल तो लेगी ही जनता किसी भी हालत में।

 

 

नवभारत के जन जागो फिर अन्ना रूठा रे,

अनशन पथ पर दौड़ चलो सब, अन्ना भूखा रे।

अन्ना भूखा, भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ेंगे,

आनाकानी लाख करे सरकार, झुकायेंगे।

सरकारी सब झूठी दलीलें जन को न भायेंगीं,

जन-लोकपाल का सबल तंत्र जनता हीं लायेगी।

गवाँ चुके हो आधी सदी कुछ कर न पाए हो,

कितनी बार संसद में भी लाकर ठुकराए हो।

अब जनता ऊब चुकी है, भ्रष्टाचार न झेलेगी,

भविष्य से, अगली पीढ़ी के, अबकी न खेलेगी।

अरे! जवाँ खून को बुला रहा, देखो एक बूढा रे!

अनशन पथ पर दौड़ चलो सब, अन्ना भूखा रे!

अन्ना भूखा, भ्रष्टाचार को खा के हीं दम लेंगे,

सरकारी लोकपाल का धोखा, हम न झेलेंगे।

सरकारी लोकपाल दलाली करेगा भ्रष्टों की,

मिलकर सब खायेंगे, जनता निर्बल रोएगी।

सेवेगा वो उनकों, जिनके सर पर होंगे ताज।

होने न देंगे ऐसा कुछ, प्रतिकार करें हम आज।

जनता जागी ! कोई इसे दे पाए न धोखा रे!

अनशन पथ पर दौड़ चलो सब, अन्ना भूखा रे!   – प्रकाश ‘पंकज’

भारत बनाम भ्रष्टाचार: छोड़ो गाना शब्द प्रलापी


भारत बनाम भ्रष्टाचार: ‘Thug’ की जननी भारतभूमि


भारत बनाम भ्रष्टाचार: जन की गुहार जन-लोकपाल


एक चतुर नाग,

करे शत-प्रहार,

मुँह फाड़-फाड़,

डँसे बार-बार।

जन चीत्कार करे बार-बार,

मचे हाहाकार,

आह! अत्याचार

ये दण्डप्रहार के बहाने हजार,

ये लोकाचार का बलात्कार,

यहाँ भ्रष्टाचार! वहाँ भ्रष्टाचार!

अँधी सरकार! चहुँ अँधकार!

भारत बीमार, रोग दुर्निवार।

http://www.indiaagainstcorruption.org/

जन अब हमार सुन ले पुकार,

पारदर्शिता की यह बयार

बहती हीं जाये, रुक्के न यार

मंथन करें, कर लें विचार,

जनता की माँग जन-लोकपाल,

जन की तलवार जन-लोकपाल

यह नव-संग्राम, दूषण संहार,

भ्रष्टों की हार, जन-लोकपाल।

अन्ना, किरण और केजरीवाल,

समरांत तक मानें न हार

India Against Corruption march (30th Jan, 2011)

कहो बार-बार, चीखो बार-बार,

जन की गुहार जन-लोकपाल,

अंतिम सवाल अब आर-पार,

जन-लोकपाल या मृत्युद्वार,

मद्द में चिंघार, जन-लोकपाल

जन-लोकपाल!  जन-लोकपाल! 


 – प्रकाश ‘पंकज’

>कैसी है रे होड़ सजन सब पाक चरित सुलगावै?


>

कैसी है रे होड़ सजन सब पाक चरित सुलगावै?
का करी घर मा बैठ कहो निज धरती आग लगावै? – प्रकाश ‘पंकज’ 

ऐ खाकनशीनों उठ बैठो, वह वक्त करीब आ पहुंचा है,
जब तख्त गिराए जाएंगे, जब ताज उछाले जाएंगे।
अब टूट गिरेंगी जंजीरें, अब जिंदानों की खैर नहीं,
जो दरिया झूम के उट्ठे हैं, तिनकों से न टाले जाएंगे।
दरबार-ए-वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जाएंगे,
कुछ अपनी सजा को पहुंचेंगे, कुछ अपनी सजा ले जाएंगे।
कटते भी चलो, बढ़ते भी चलो, बाजू भी बहुत हैं,सर भी बहुत,
चलते भी चलो कि अब डेरे, मंजिल पे ही डाले जाएंगे।  – फैज अहमद फैज