वो राधा-किशन का प्रेम कहाँ? जगती जिसको दोहरा न सकी।


प्रेम गीत एक लिखने को
फिर कलम हमारी चल न सकी,

वो राधा-किशन का प्रेम कहाँ
जगती जिसको दोहरा न सकी? – प्रकाश ‘पंकज’

संघर्ष बस अपना रहा, यह कर्म ही अपना रहा ।


न जीत ही अपनी रही, न हार  ही अपनी रही,
संग्राम बस अपना रहा, कर्मभूमि बस अपनी रही ।  
– प्रकाश ‘पंकज’

क्यों खग सामान उन्मुक्तता अब शूल हुई है ?


समय के पिछले पन्नों पर कुछ भूल हुई है,
क्यों खग सामान उन्मुक्तता अब शूल हुई है ?   
– प्रकाश ‘पंकज’

कैसी है यह जागृति जब आँखें मूँद सब चल रहे ?


विकास के उन्माद में सब सो चुके हैं गहरी नींद।
कैसा है यह विकास जो विनाश को आमंत्रित कर रहा है ?
कैसी है यह जागृति जब आँखें मूँद सब चल रहे ?
कैसी है यह शिक्षा जो विनाश को प्रेरित करती है ?

प्रकृति के साथ मानव का कैसा यह संघर्ष है ?              – प्रकाश ‘पंकज’