मरुथल का तीर


पाँव-फफोले देख-देख तू क्यों सकुचाए अधीर, 
आगे बढ़ कर देख मिलेगा – इस मरुथल का तीर।  

 – प्रकाश ‘पंकज’

चलो लोकतंत्र की लाश पर जलसा किया जाये


लोकपाल की लाश का मजमा किया था हमने,
चलो लोकतंत्र की मौत पर जलसा किया जाये .. 

कमाने की तड़प में खाना भूल गए?


खाने की तड़प से ही तुमने कमाना सीखा … 
….. और कमाने की तड़प में खाना भूल गए   – प्रकाश ‘पंकज’

फुलझड़ियों को आग लगाने से क्या होगा आज? बताओ !


भारत बनाम भ्रष्टाचार: छोड़ो गाना शब्द प्रलापी


भारत बनाम भ्रष्टाचार: ‘Thug’ की जननी भारतभूमि


>भारत बनाम भ्रष्टाचार: जनता भींगेगी या बरसेगी?


>कभी न पूरी हो सकने वाली जिद्द


>वाह रे ग्लोबलाईजेशन ! तूने घरवालों को भी बेघर कर दिया


>

वाह रे ग्लोबलाईजेशन !
तूने घरवालों को भी बेघर कर दिया।
सभी खानाबदोश जैसे इधर-उधर भाग रहे हैं;
शायद उन्हें भी पता नहीं, क्यों?

– प्रकाश ‘पंकज’

 * चित्र: गूगल साभार 

>हनुमान तो सबके भीतर है, जगाने वाले जामवंत की आवश्यकता है।


>

“उस युग के जामवंत”
“इस युग के जामवंत”
हनुमान तो सबके भीतर है,

जगाने वाले जामवंत की आवश्यकता है।

सम्मान पाने के लिए सम्मान देना सीखें


यदि आप खुद को मुझसे छोटा समझते हैं,
मैं आपसे बहुत छोटा हूँ
यदि आप मुझसे बड़े होने का दम्भ भरते हैं,
तो मैं आपसे भी बड़ा हूँ।  – प्रकाश ‘पंकज’

अंगद सा हमने पद रोपा


ले नाम सियावर रामचन्द्र,
अंगद सा हमने पद रोपा।
है पूत कहीं ऐसा जग में
जो पाँव हमारे डिगा सके?  
 –प्रकाश ‘पंकज’

सन्दर्भ: अंगद की आस्था और विश्वास
http://www.youtube.com/v/V2wzo8jBRok?fs=1&hl=en_US&color1=0xe1600f&color2=0xfebd01

वो क्या थी नभ की छत – प्रकाश ‘पंकज’


वो क्या क्षुधा का स्वाद था?

वो क्या थी नभ की छत?

"बाल मजदूरी कानून".. किसका अभिशाप? किसका वरदान?


“बाल-मजदूरी कानून”.. किसका अभिशाप? किसका वरदान?
गजब के घटिया कानून है देश के:
एक समृद्ध परिवार का बच्चा जिसकी परवरिश बड़े अच्छे ढंग से हो रही है, अपने स्कूल और पढाई छोड़ कर टी.वी. सीरियल या फिल्म में काम करता है सिर्फ और सिर्फ अपनी और अपने परिवार की तथाकथित ख्याति के लिए तो यह “बाल-मजदूरी” नहीं होती। वेश्यावृति करने वाली मीडिया भी इसे प्रोत्साहित करती है।
वहीँ अगर कोई बच्चा अपने और अपने परिवार वालों का पेट पालने के लिए प्लेट धो लेता है तो यह “बाल-मजदूरी” हो जाती है और वहीँ यह दोगली मीडिया उस बात को उछाल-उछाल कर कान पका देती है।
.. हमारे यहाँ ऐसे लोगों की भी कमी बिल्कुल नहीं है  जो कहेंगे कि वे टी.वी. शो वाले प्रतिभा को प्रोत्साहित कर रहे हैं। ऐसे लोगों को मेरा एक ही जबाब है अगर आपके बच्चों का टी.वी. शो में नाचना गाना प्रतिभा हो सकती है तो हरेक शाम अपनी और अपने घरवालों की रोटी जुगारने की कोशिश में उन बच्चों की प्रतिभा कहीं से भी कम नहीं है, बल्कि ज्यादा ही है। और,  अगर आप उनके सामाजिक विकास और शैक्षणिक विकास की बात करें तो दोनों जगहों पर एक हीं बात सामने आती है कि वे सभी अनिवार्य शिक्षा से दूर हो रहे हैं। जुलाहे का बच्चा तो सुविधा नहीं मिलने के कारण शिक्षा में पिछड़ रहा है पर आपका बच्चा तो सुविधाओं के बावजूद उस धारा में बह रहा है जो शैक्षणिक विकास से बिलकुल अलग है। अगर ऐसा ही रहा तो आने वाली पीढ़ी एक “कबाड़ पीढ़ी” पैदा होगी।
यहाँ मै कानून को लाचार ही नहीं उन लोगों का नौकर भी समझूंगा जिनके पास पैसा है, शक्ति है, वर्चस्व है। यही लोग कानून को कुछ इस तरह से बनाते है कि जिनके पास ऐसी समृद्धि है वो इससे निकल सकते हैं और जिनके पास नहीं है वो पिसे जाते हैं इन कानूनी दैत्य-दन्तों द्वारा।

अगर कोई होटल-ढाबे वाला किसी को जीविका देने के लिए “बाल-मजदूरी” करवाने का दोषी हो सकता है तो आज हम सारे लोग जो बड़े मजे से टी.वी. के सामने ठहाके मारते हैं, वाह-वाह करते है, मेरी नज़र में वो सब दोषी हैं “बाल-मजदूरी” करवाने के।

… कानून माने या न माने।
… आप माने या न मानें।
… और मुझे यह भी मालूम है कि अकेले सिर्फ मेरे मानने से भी कुछ नहीं होने को है।
और अंत में इतना हीं कहूँगा कि यदि आपमें अब भी समाज के प्रति थोड़ी नैतिक जिम्मेदारी बची हो तो इसपर विचारें और ऐसे टी.वी. सीरियलों, फिल्मों का “प्रतिकार” करें, सामाजिक बहिष्कार करें, उनका सहभागी न बनें, किन्नरों जैसे तालियाँ न पीटें।

चलता हूँ और आपके लिए कुछ लिंक छोड़ जाता हूँ। धन्यवाद!

‘पंकज-पत्र’ पर पंकज की कुछ कविताएँ: प्रतिकार


‘पंकज-पत्र’ पर पंकज की कुछ कविताएँ: प्रतिकार

पिछले कुछ दिनों से मेरे मन की स्थिति दयनीय थी। चाह रहा था कुछ लिखना पर लिख नहीं पा रहा था। करुण स्थिति में लिखी गई यह कविता समाज के कुछ ऐसे कुख्यात प्रकार के लोगों को समर्पित है जो की “निम्न” हैं :
अनुच्छेद।।१।। कलमाड़ी, अशोक चव्हाण, ए. राजा और उन जैसे भ्रष्ट लोगों के लिए।
अनुच्छेद।।२।। शिक्षा के नाम पर व्यापार करने वालों के लिए। 
अनुच्छेद।।३।। गिलानी, अरुंधती जैसे अन्य देशद्रोहियों या राष्ट्र-विरोधियों के लिए जो देश की अखंडता पर चोट करते हैं।
कविता का पता (जरूर पढ़ें): ‘पंकज-पत्र’ पर पंकज की कुछ कविताएँ: प्रतिकार

मुझे हर चीज़ में डंडा करने की बुरी आदत है


लोग कहते हैं,
मुझे हर चीज़ में डंडा करने की बुरी आदत है।

मैं सोंचता हूँ,
डंडे से तो कुछ बदला नहीं,
अबकी बाँस उठाकर कोशिश करूँ।


*चित्र: गूगल साभार 

संकल्पों के दीप जलाता कदम बढ़ाता चल


संकल्पों के दीप जलाता कदम बढ़ाता चल,
वक्ष दबे बारूदों से खुद राह बनाता चल।  

– प्रकाश ‘पंकज’

ये बारूद जो सुलग रहे हैं हम जैसों के भीतर, न जाने कब फूटेंगे,
फूटेंगे भी या फिर बस फुसफुसा कर ही रह जाएँगे – ये भी किसे पता?
… कोई बात नहीं,
आज तो कम से कम कुछ कानफोड़ू धमाके कर के बहरों को सुना देने का भ्रम और मजबूत कर लें!
 
शुभ पटाखोत्सव! 😉
शुभ दीपोत्सव!
आपको  और आपके परिवार को प्रकाश-पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ !

ऐसा दिया जलाएँ मन में, जग उजियारा होए!

जीना एक आडम्बर साला मरना भी पाखंड !


जीना एक आडम्बर साला
मरना भी पाखंड !  

 – प्रकाश ‘पंकज’

अनुपयुक्त शब्द प्रयोग के लिए क्षमा पर रोक नहीं पाया।

चित्र: गूगल देव साभार

फिर भी न जाने कैसे हम निर्लज्जों को राष्ट्र पर गर्व है


हमारे हिन्दुस्तान में

हिन्दी कम जानना या नहीं जानना बड़े गर्व की बात है,

पर अंग्रेजी कम जानना एक शर्म की बात है

और अंग्रेजी नहीं जानना डूब मरने की बात है।

… फिर भी न जाने कैसे हम निर्लज्जों को राष्ट्र पर गर्व है

– प्रकाश ‘पंकज’

भरत-पुत्रों की चेतावनी


दुनिया वाले सुन लें …
भरत-पुत्रों की सहनशीलता का तटबंध जब टूटता है,
वे भीम समान मानवता भूल रक्तपिपासु हो जाते है,
शत्रु-वक्ष की रुधिर-चासनी पी कर ही अघाते हैं ।
 … कोशिश हो ऐसा रक्तिम इतिहास दोहराया न जाये ।   
– प्रकाश ‘पंकज’